रिपोर्ट – अक्षय राठौर
सुसनेर। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव द्वारा मध्य प्रदेश के निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में भारतीय नूतन संवत 2081 से घोषित गो रक्षा वर्ष के तहत जनपद पंचायत सुसनेर की समीपस्थ ननोरा, श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित एवं श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्स के 130 वे दिवस पर श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज ने बताया कि आज एक ऐसे महापुरुष जिन्होंने विवेकानंद जैसा महापुरुष देकर शिकागो सम्मेलन में हिन्दूस्थान का विश्वपटल पर आध्यात्म जगत में एक नए रूप में खड़ा कर दिया था ऐसे भारत के एक महान सन्त एवं अध्यात्म गुरु एवं विचारक स्वामी रामकृष्ण परम् हंस का आज स्मृति दिवस है , उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर भी जोर दिया और बचपन से ही उनका ईश्वर पर विश्वास था और ईश्वर है। इसके लिए उन्होंने कठोर तप भी किया। मानवता के रामकृष्ण परम हंस पुरजोर पुजारी थे और मां काली के उन्हें साक्षात दर्शन हुए है। मां काली के विश्वरूप में भी उन्हे दर्शन हुए है । युवावस्था में ही इनकी इतनी ख्याती बढ़ गई थी कि रामकुमार चटोपध्याय जैसे महापुरुष ने इन्हे मां काली के मन्दिर में विराजमान कर दिया और मां काली ने भी इन्हे अपने एक पुत्र के नाते प्यार दिया है ऐसे दिव्य पुरुष का आंग्ल तिथी के अनुसार आज ही के दिन 16 अगस्त 1886 को मां काली में समा गए ऐसे दिव्य सन्त को शत शत नमन एवं वंदन।
स्वामीजी ने कथा में बताया कि गाय माता पवित्रता की महामूर्ति है। देवता की भी देवता है गायमाता। इनके द्वारा प्राप्त गोमूत्र पवित्र, गोबर पवित्र, दूध पवित्र, इनकी श्वास पवित्र, इनका स्पर्श पवित्र और जहां गायमाता बैठती है वह स्थान पवित्र हो जाता है अर्थात जिस घर में गोमाता का निवास है है उस घर में किसी भी प्रकार का वास्तुदोष नहीं होता है और वह घर मन्दिर जैसा पवित्र हो जाता है।
स्वामीजी ने बताया कि माता, पिता, ईश्वर और गुरु की बात मानने के लिए विचार करने की आवश्यकता नहीं है। कलयुग में तपस्या की आवश्यकता नहीं होती है। गो सेवा करना और सत्य बोलना सबसे बड़ी तपस्या है। ऐसा करने से हजार साल की तपस्या का फल एक सप्ताह में मिल सकता है। माला फेरने से भी उत्तम है काम करते हुवे भगवान नाम के स्मरण करना।
भविष्य पुराण के तृतीय खंड में स्पष्ट लिखा है कि गोमाता का घी हमेशा रखन चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव निरंतर बना रहता है।
श्रावण मास जैसे भगवान शिवजी के पवित्र मास में सुसनेर नगर में एक बछड़े की मृत्यु किसी वाहन के कारण हो गई है उस बछड़े की मृत्यु पर गहरा दुःख प्रगट करते हुए स्वामीजी ने सुसनेर नगर के गोसेवकों एवं प्रशासन से आग्रह किया है कि वे सुसनेर नगर एवं हाइवे पर जितने भी निराश्रित बीमार एवं छोटे बछड़ों वाली गोमाताएँ है उन्हें वाहन के माध्यम से गो अभयारण्य भिजवाएं अभयारण्य उन सभी गोवंश की मातृत्व भाव से सेवा से सेवा करेगा।
130 वे दिवस की गो कृपा कथा में सती अनुसूया आश्रम चित्रकूट के संत स्वामी निजानंद महाराज जिनका झालावाड़ जिले की रायपुर तहसील के काया बारडा नामक स्थान पर भी आश्रम है इसे दिव्य सन्त का गो कृपा कथा में पदार्पण हुआ।
एशिया के प्रथम गो अभयारण्य में श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के आजीवन न्यासी सीकर निवासी गोपाल सैनी ने बजरंग शेखावत, मनराम मीणा, अंकित सोना एवं कुलदीप गोड के साथ 1000 पौधे अपने हाथों से लगाएं और पटना निवासी रामेश्वर प्रसाद सिन्हा गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के आजीवन न्यासी बने।
130 वें दिवस पर उज्जैन निवासी राजेन्द्र कुमार राठौर एवं राजस्थान के बकानी से भैरूलाल राठौर ने अतिथि के रूप में उपस्थित रहें।
श्रावण शुक्ला एकादशी पर शिवसहस्त्राहुती यज्ञ, पार्थिव शिवलिंग पूजन एवं रुद्राभिषेक सीकर के मनमोहन मिश्रा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रमा बाई बायंडर मुम्बई निवासी की और से एकादश विप्रजनों के माध्यम से सम्पन्न हुआ।
130 वे दिवस पर चुनरी यात्रा राजस्थान के झालावाड़ जिले की पिडावा तहसील से
एक वर्षीय गोकृपा कथा के 130 वें दिवस पर राजस्थान के झालावाड़ जिले की पिडावा तहसील के पुरा गैलाना देव डूंगरी (धतुरिया) ग्राम से भगवानसिंह, भंवरलाल, सज्जनसिंह, सावरा बना, केलाश विश्वकर्मा, प्रभुलाल, सीताराम, लालचंद, सुरेन्द्रसिंह, शोभाराम, मानसिंह, रामसिंह एवं एहसानसिंह सहित ग्राम के की मातृशक्ति, युवा, वृद्ध अपने देश, राज्य एवं ग्राम/नगर के जन कल्याण के लिए गाजे बाजे के साथ भगवती गोमाता के लिए छपन्नभोग लेकर पधारे और कथा मंच पर विराजित भगवती गोमाता को चुनरी ओढ़ाई एवं गोमाता का पूजन कर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन करके यज्ञशाला की परिक्रमा एवं गोष्ठ में गोसेवा करके सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।