रिपोर्ट अक्षय राठौर
सुसनेर/- 19अप्रेल,निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए एशिया के प्रथम गो अभयारण्य मालवा में चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्ष्णा गो आराधना महामहोत्सव* के एकादश दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को संबोधित करते हुए ग्वाल सन्त स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती ने कहां कि गोमाता से प्रीति कम होने के कारण हमने गाय को घर से बाहर निकाला है, जिसके कारण हम दुखी हो रहें है , विशेष रूप से मालवा की धरा पर तो मालवी नस्ल की गोमाता की विशेष कृपा रही है और यहां इन्द्र भगवान भी वर्षा रूपी अमृत बरसाकर खूब मेहरबानी करते रहें है ,लेकिन जब से मालवा की भूमि में गोमाता को घर से बाहर सड़कों पर छोड़ा है तबसे मालवा की भूमि से वर्षा के देवता इन्द्र भी नाराज है और कभी कभी तो मालवा में अकाल जैसी स्तिथि आ जाती है ।
स्वामी जी ने कहां कि हिरण की नाभी में कस्तूरी रहती है फिर भी ज्ञान के अभाव में वह उसे ढूंढने के लिए भटकता रहता है । क्योंकि गोमाता जैसा अमूल्य रत्न भगवान ने हमें दिया है लेकिन आज उसे हम भूल बैठे है भगवती गोमाता की महिमा का वर्णन करने के लिए ही मालवा की पुण्य भूमि में एक वर्ष तक निरंतर गो महिमा का यह कार्यक्रम हो रहा है ।
स्वामी जी ने मानव का अर्थ बताते हुए कहां की हमारे शास्त्र पुराणों में मानव(मां+नव) की नो माता का उल्लेख है, जिसमें से प्रथम मां गोमाता ही है । अर्थात जन्मदात्री मां तो अधिकतम दो वर्ष तक अपने बच्चे को दूध पिलाती है ,लेकिन गोमाता हमें जीवन भर दूध पिलाती है ,इसलिए तो कहां है “गावो विश्वस्य मातर: अर्थात गाय विश्व की माता है ।
स्वामी जी ने बताया कि जिस प्रकार द्वापर में भगवान कृष्ण ने यदुवंश में जन्म लेकर ग्वाल बनकर गोमाता की सेवा की उसी प्रकार कलियुग में मां करणी माता ने गोसेवा हितार्थ अपने महलों को त्याग कर गोचर में निवास कर गोमाता की सेवा की ।
स्वामी जी ने बताया कि दूसरी माता धरती माता है अर्थात हम अन्न उपजाने एवं जल प्राप्त करने के लिए धरती माता का छेदन करते है यानि कष्ट सहकर भी वह हमें शुद्ध अन्न एवं जल उपलब्ध करवाती है लेकिन जब से हम गाय से दूर हुए है तबसे धरती माता भी दूषित हो गई है, क्योंकि धरती माता का भोजन तो गोमाता का गोबर ही है लेकिन हरित क्रान्ति के नाम से हमने जो धोखा खाया है अर्थात यूरिया, डीएपी के नाम से जबसे हमने हमारी धरती माता को दूषित किया और जिसके परिणाम स्वरूप हमारा अन्न, जल,वायु एवं पर्यावरण सब दूषित हो गए है और मनुष्य असाध्य बीमारियों का शिकार होकर असमय काल का ग्रास बन रहा है । इसलिए धरती माता के सच्चे सपूत को घर में गोपालन करना ही होगा । क्योंकि गोमाता का गोबर ही धरती की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है । इसलिए धरतीपुत्रों को यूरिया, डीएपी त्यागकर गोमाता के गोबर के खाद का उपयोग कर अमृतमय अन्न उत्पादन कर सुखद मृत्य को प्राप्त किया जा सकता है ।
धरती माता को साक्षात भगवान नारायण की पत्नि माना गया है, इसलिए प्रातः उठकर उसको वंदन करना चाहिए ।
*दशम दिवस का गो भंडारा एवं चूनड़ी यात्रा सोयत कलां के श्री रूपेश जी शर्मा परिवार की ओर से*
एक वर्षीय गोकृपा कथा के एकादश दिवस पर सोयत कलां से श्री रूपेश जी शर्मा के परिवार से भगवती गोमाता के लिए चुनरी यात्रा एवं गोमाता के भंडारे की सामग्री लेकर अभयारण्य पधारे । रूपेश जी के परिवार ने मंच पर पहुंच कर भगवती गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर भगवती गोमाता जी का पूजन आरती की और अंत में सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया ।