राष्ट्रमाता जिजाऊ की प्रतिमा से गौरवान्वित होगा इंदौर
वरिष्ठ पत्रकार -रामनाथ मुटकुळे (इंदौर) कि कलम से
इंदौर।
राष्ट्रमाता जीजाबाई राजे भोसले देश की ऐसी महान नारी शक्ति हैं, जिन्होंने ऐसे हिंदवी स्वराज्य की नींव रखी, जिसके आधारस्तंभ पर भगवा ध्वज हिंदुस्तान में अटक से लेकर कटक तक शान से लहराया। उन्होंने अपने अकेले दम पर इस देश को दो-दो छत्रपति दिए। उनके शिक्षण, अनुशासन और मार्गदर्शन से हिंदुस्तान में मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई और मुगलों के शासन और आतंक से इस देश के लोगों को मुक्ति मिल सकी। ऐसी महान नारी शक्ति की प्रतिमा इंदौर में स्थापित होने जा रही है, जो कि इस शहर ही नहीं वरन् पूरे प्रदेश के लिए गौरव का विषय है। पूरे प्रदेश के लिए इसलिए भी क्योंकि इंदौर में लगने जा रही जीजा माता की प्रतिमा पूरे प्रदेश में पहली ऐसी प्रतिमा होगी। यह प्रतिमा इंदौर में तीन पुलिया पर स्थापित होगी। इस स्थान का नाम अब राष्ट्रमाता जिजाऊ चौक हो गया है।
राष्ट्रमाता जिजाऊ की प्रतिमा बाल शिवाजी को मार्गदर्शन देते हुए है। यह प्रतिमा स्थापित होने के बाद वर्षों तक युवाओं को राष्ट्रभक्ति, धर्म और संस्कृति की प्रेरणा देती रहेगी। जिस प्रकार से उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज को अपनी शिक्षा, अनुशासन और मार्गदर्शन से तैयार किया और उनमें प्रजा पालक के गुणों का विकास किया, उसी तरह से इस देश के हर युवा उनके विचारों और संस्कारों से प्रेरणा देने वाली यह प्रतिमा सदियों तक युवाओं को प्रेरित करती रहेगी।
हिंदुस्तान की इस महान नारी का जन्म 12 जनवरी 1598 को महाराष्ट्र के सिंदखेड़राजा में लखुजीराजे जाधव और रानी म्हालसा के घर हुआ था। कम उम्र में ही उनका विवाह वेरूल (औरंगाबाद के समीप, जहां एलोरा की गुफाएं हैं) के मालोजी राजे भोसले के पुत्र शाहजी राजे भोसले से हुआ। उनके पति शाहजी राजे भोसले समय-समय पर मुगलों, निजाम और आदिलशाह के सेनापति रहे। इस दौरान हर समय स्वराज्य के लिए उनकी आत्मा उन्हें कचोटती रहती थी। हमेशा लड़ाइयों में रत रहने के कारण कभी उनकी गृहस्थी स्थायी नहीं हो सकी। उन्हें यहां से वहां भटकते रहना पड़ा। इसी दौरान जीजामाता गर्भस्थ हुईं और उन्हें इस देश के अनमोल रत्न शिवाजी राजे को जन्म दिया। राजकाज और राजनीति की शिक्षा देते हुए बाल शिवाजी को बड़ा किया और उनके मार्गदर्शन में शिवाजी राजे छत्रपति बने और मराठा साम्राज्य की स्थापना कर देशभर में भगवा ध्वज फहराया।
इस दौरान प्रत्येक राज्यनीति, युद्धनीति और हर तरह के फैसले में जीजामाता का हस्तक्षेप रहा। यही नहीं स्वराज्य पर आए हर संकट के समय उनके मार्गदर्शन से सफलतापूर्वक निपटा गया। वहीं आदिलशाही सरदार सिद्दी जौहर के घेरे में जब शिवाजी महाराज पन्हाला किले में घिर गए थे, तब और जब शिवाजी राजे आगरा में औरंगजेब के कब्जे में नजरबंद रहे, तब भी जीजा माता ने राज्य शासन का कार्यभार संभाला। इसके अतिरिक्त जब-जब शिवाजी महाराज युद्ध में या और किसी कारणवश राजधानी से बाहर होते थे, तब राजकाज का सारा कार्यभार वे ही संभालती थीं। उनकी शिक्षा की बदौलत ही छत्रपति शिवाजी महाराज बचपन से ही नारी शक्ति का सम्मान करते थे। उनके राज्य में नारी को पूर्ण सम्मान प्रदान किया गया।
जीजा माता का संपूर्ण जीवन संघर्ष में ही गुजरा। पहले पति शाहजी राजे भोसले को हमेशा युद्ध में संघर्षरत देखा। बाद में उनके पिता लखुजीराव जाधव, दो भाई और एक भतीजे की औरंगाबाद के समीप दौलताबाद के किले में निजाम द्वारा हत्या करवा दी गई। यह उन पर एक वज्राघात था। इसी दौरान उनके गर्भ में शिवाजी राजे पल रहे थे। बाद में उन्होंने बाल शिवाजी को अकेले बड़ा किया और पूना की उजाड़ जागीर को फिर से बसाया। वहीं बाल शिवाजी के मन में स्वराज्य की भावना कूट-कूटकर भरी। जिसके बलबूते हिंदवी स्वराज्य इस देश में स्थापित हो सका और बरसों से विजातीय शासकों की गुलामी से मुक्त हो सका।
आदिलशाही सरदार अफजल खान हो या सिद्दी जौहर से संघर्ष करने के लिए उन्होंने अपने प्रिय पुत्र को विदा किया, तब कल्पना की जा सकती है कि उनके मन पर क्या बीत रही होगी। जब शिवाजी महाराज सिद्दी जौहर के घेरे में और औरंगजेब के कब्जे में कई माह कैद रहे, तब एक मां पर क्या गुजरी होगी… इसकी कल्पना करने मात्र से सिहरन सी उठ आती है। ऐसे में जीजा माता की महानता को नमन करना हम सबका कर्तव्य बनता है। उन्होंने अपने जीवन और अपने पुत्र के बारे में विचार न करते हुए राष्ट्र का और अपनी प्रजा का विचार किया और उनके हित के लिए अपने सुख त्याग दिए।
ऐसी महान नारी की प्रतिमा इंदौर शहर में लगने जा रही है, यह सभी इंदौरवासियों के लिए बड़े ही गौरव का विषय है। इस कार्य में महती भूमिका निभाने वाले मराठी भाषी सेवा संघ और संघ की अध्यक्ष स्वाति युवराज काशिद बधाई के पात्र हैं।